बोलो भगत सिंह, बिस्मिल, अश्फ़ाक
जब तुम ज़िंदा थे क्या तब भी
लोग बुलाते थे तुमको कहकर
आतंकवादी, हत्यारा, दंगाई
क्या तुम भी डरते थे
कुछ कहने-करने से
सरकारों के ख़िलाफ़
सत्ता के अन्याय के ख़िलाफ़
या लड़ते थे तुम
अपने देश के लिए जी जान लगाकर
बिना परवाह किए अंधों
और अज्ञानियों के लांछनों की
पढ़ा है मैंने तुमको
जाना है तुमको जी कर
तुम निडर थे, अडिग थे
अपनी राष्ट्र्भक्ति पर
आज वो लोग तुम्हारा सहारा
लेते हैं ताकि धो सकें
ख़ुद के पाप, जो किए थे उन्होंने
तुम्हारे ख़िलाफ़ होने पर
हैं अंधे लोग आज भी
जो नाम लेते हैं तुम्हारा
मगर जानते नहीं तुम्हें
कि तुम क्यों लड़ते थे
तब भी थे बहुत लोग
जो खड़े थे सत्ता के साथ
और कहते थे, हो तुम ही
समाज के दुश्मन
मगर तुम, चिंता न करना
तब भी तुम कुछ ही थे
आज भी हम कुछ ही हैं
मगर तुम्हारी ताक़त ज़िंदा हैं
तुम्हारी सोच ज़िंदा है
जो थी सारी बंदिशों से परे
जो थी, देश के ग़रीबों, मज़लूमों
मासूमों के साथ, हर अन्याय के ख़िलाफ़
तुम ज़िन्दा हो हम सब में
तुम्हारे विचार ज़िंदा हैं
तुम्हारी बातें ज़िंदा हैं
तुम्हारे लोग ज़िंदा हैं
तुमने बताया था हमें
आज़ादी क्या है?
उसी आज़ादी की लड़ाई
चल रही है अब तक
हमें माफ़ करना, हम
नहीं कर पाए अब तक
सपना पूरा तुम्हारा
तुम्हारे साथियों का
माफ़ करना हमें
हमने मौक़ा दिया लोगों को
अंधा हो जाने का
डरने का, ग़ुलाम हो जाने का
आज फिर से दिलाते हैं
तुम्हें यक़ीन, लड़ेंगे तब तक
जब तक तुम्हारा सपना, तुम्हारी आज़ादी
पा नहीं लेते
सत्ता के घमंडियों से
तुम यक़ीं रखना
तुम्हारी आज़ादी, तुम्हें मिलेगी
भरोसा रखना और दिखाते रहना
हमें रास्ता, तुम्हारी आज़ादी का।
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