स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ हर्ष वर्धन द्वारा 2 मार्च 2020 को लोकसभा में मेडिकल टर्मिनेसन ऑफ प्रेगनेन्सी (अमेण्डमेंट) बिल, 2020 प्रस्तुत किया गया ।
यह विधेयक मेडिकल टर्मिनेसन ऑफ प्रेगनेन्सी एक्ट, 1971 के संशोधन को प्रस्तावित करता है, जो पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा कुछविशेष गर्भावस्थाओं के पतन हेतु विनियमित है ।
मुख्य विशेषताएँ :
गर्भपात के लिए निर्धारित सप्ताहों की संख्या में बढ़ोतरी :
- विशेष श्रेणी की महिलाओं हेतु ऊपरी सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह करना प्रस्तावित है । इनमें शामिल हैं -
- बलात्कार पीड़ितायें
- अनाचरण पीड़ित तथा अन्य अति संवेदनशील महिलायें (जैसे - दिव्यांग महिलाएँ एवं नाबालिग)
क्रियाकलाप :
यह विधेयक निम्न प्रावधानों को संशोधित करता है :
- 20 सप्ताह तक की गर्भावस्था के पतन के लिए एक पंजीकृत चिकित्सक ।
- 20 तथा 24 सप्ताह के बीच की गर्भावस्था के पतन के लिए दो पंजीकृत चिकित्सक ।
- 24 सप्ताह तक की गर्भावस्था के पतन की सुविधा केवल कुछ विशेष श्रेणी की महिलाओं पर ही लागू होगी, जिसे केंद्र सरकारद्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है ।
मुद्दे :
1. यह गर्भावस्था के किसी भी स्तर पर गर्भपात को महिलाओं की इच्छा के रूप में चिन्हित नहीं करता है :
- चिकित्सीय गर्भपात के सुरक्षित एवं गैर-आक्रामक होने के प्रमाण होने के बावज़ूद यह संशोधन गर्भावस्था के किसी भी स्तरपर महिलाओं के इच्छानुसार गर्भपात करवाने की स्वतंत्रता को चिन्हित नहीं करता है । यहाँ तक कि ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ भी ऐसी किसी अधिकतम समय सीमा को निर्धारित नहीं करता है जिसके पश्चात् गर्भपात नहीं करवाया जा सकता हो ।
- ‘महिला एवं उसके साथी’ शब्द को जोड़ना यह दिखाता है कि महिलाओं को अभी भी गर्भपात करवाने के लिए अपने सम्बन्धों काविवरण स्पष्ट करना होगा । इस प्रकार यह प्रावधान बड़ी संख्या में अकेली महिलाओं विशेषतः देह व्यापार में शामिल महिलाओंको इस सुविधा से वंचित करता है । कुछ ट्रांसजेंडर (जो महिला नहीं है) हार्मोन थेरपी के बावजूद भी गर्भधारण कर सकते हैं औरफिर उन्हें गर्भपात की आवश्यकता भी हो सकती है । चूँकि यह विधेयक केवल महिलाओं के गर्भपात के लिए ही प्रावधान करता हैतब यह बिल्कुल अस्पष्ट है कि ट्रांसजेंडर को इसके अंतर्गत समाविष्ट किया जाएगा या नहीं । इस विधेयक द्वारा गर्भपात कीआवश्यकता रखने वाले नाबालिगों के लिए भी स्पष्ट दिशा-निर्देश अनुशंसित करने चाहिए ।
- चूँकि यह संशोधन 24 सप्ताह के पश्चात् गर्भपात करवाने के लिए चिकित्सकीय मंडल (मेडिकल बोर्ड) द्वारा तृतीय पक्ष सत्यापनको अनिवार्य बनाता है । ये चिकित्सकीय मंडल (मेडिकल बोर्ड) सामान्यतः शहरी क्षेत्रों में ही विद्यमान होते हैं तब ऐसी स्थिति मेंविशेषतः ग्रामीण क्षेत्रों में हाशिये पर जीवन-यापन करने वाले व्यक्तियों तथा बलात्कार पीड़ितों के लिए आवश्यक सत्यापन प्राप्तकरना अनावश्यक देरी तथा लागतपूर्ण होगा । ग्रामीण क्षेत्रों में योग्य पेशेवर चिकित्सकों की अनुपलब्धता से महिलाएँ असुरक्षितगर्भपात करवाने को मजबूर होती है [ All India Rural Health statistics (2018-19) के अनुसार भारत में लगभग 67% गर्भपातों को असुरक्षित के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया है, जो कि विभिन्न राज्यों में परिवर्तनशील (45.1% - 78.3%) है ]
नोट :
72 घंटों तक के गर्भपात हेतु लागत : ₹ 75 - 200
7 सप्ताह तक के गर्भपात हेतु लागत : ₹ 5000
7 से 10 सप्ताह के बीच के गर्भपात हेतु लागत : ₹ 15000 +
10 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भपात के लिए लागत : 25000 +
4. निजता के अधिकार का उल्लंघन :
- 2020 के संशोधन अधिनियम का गोपनीयता खंड गर्भवती महिला के विवरण को ‘क़ानून द्वारा सत्यापित’ व्यक्ति के सामने प्रकटकरने की अनुमति प्रदान करता है । यह खंड पूर्ण रूप से निजता के अधिकार का उल्लंघन है । वर्तमान संशोधन विधेयक में नकेवल महिला की अपने शरीर के प्रति स्वायत्ता को पूरी तरह से नज़र अन्दाज़ किया गया है बल्कि अपनाया गया दृष्टिकोण पूरीतरह से प्रतिगामी एवं क्षति करने वाला है ।
- यह विधेयक 24 सप्ताह के पश्चात् गर्भपात की अनुमति मात्र उन मामलों में प्रदान करता है जिनमें किसी मेडिकल बोर्ड द्वारापर्याप्त भ्रूण असामन्यताओं का पता लगाया गया हो । इससे यह अंदेशा होता है कि बलात्कार के परिणामस्वरूप हुए ऐसेगर्भधारण जिन्हें 24 सप्ताह से अधिक का समय हो गया हो, उनके गर्भपात के लिए भी इस प्रक्रिया में कोई परिवर्तन नहीं है । इसस्थिति में गर्भपात की अनुमति प्राप्त करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के पास रिट याचिका दायर करना हीएकमात्र उपाय बचता है ।
- नवंबर 2018 में असम एवं मध्य प्रदेश में 15-24 वर्ष की उम्र की 1007 महिलाओं के अध्ययन से पाया गया कि ऐसी मात्र 20% महिलायें हैं जो आधुनिक गर्भ निरोधकों के बारे में जानती है तथा ऐसी मात्र 22% महिलायें हैं जो इस बात के प्रति जागरुक हैं किभारत में गर्भपात वैध है । भारत में अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती हैं तब भी कई निजी तथा सामाजिककारणों से इन क्षेत्रों में सुरक्षित गर्भपात सुलभ नहीं हैं । बिहार तथा झारखंड के ग्रामीण समुदायों में Ipas Development foundation (IDF) द्वारा किया गया अनुसंधान बताता है कि 30% महिलायें भी इस बात को नहीं जानती हैं कि भारत में गर्भपातवैध है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी यह कहा है कि गर्भपात हेतु किसी प्रकार की अधिकतम समय सीमा नहीं है तब इस पर किसी प्रकारकी 24 सप्ताह की समय सीमा को निर्धारित नहीं करना चाहिए । चूँकि यह किसी महिला की देह तथा प्रजनन क्षमता एवं स्वास्थ्यहेतु बड़ा ही संवेदनशील मामला है तब यह निर्णय पूरी तरह उसी महिला का होना चाहिए कि उसे अपनी गर्भावस्था की अवधि केकिसी भी समय पर गर्भपात करवाना है अथवा नहीं ।
- यदि किसी दुर्लभ मामले में मेडिकल बोर्ड का गठन अनिवार्य हो जाता है तब इसमें एक पंजीकृत मनौवैज्ञानिक को आवश्यक रूपसे शामिल किया जाना चाहिए, जो यौन दुर्व्यवहार से पीड़ित व्यक्ति को पर्याप्त परामर्श प्रदान कर सके तथा जो महिलायें अपनागर्भपात करवाना चाहती है उनके मनौवैज्ञानिक आघात का मूल्यांकन एवं निराकरण कर सके ।
- प्रजनन उम्र की 59 करोड़ (36%) महिलायें उन देशों में निवास करती है जहां अनुरोध पर गर्भपात की सुविधा उपलब्ध है । दुनियामें 67 देश इस श्रेणी के अंतर्गत आते है । नेपाल, कनाडा, चीन तथा स्वीडन जैसे देश गर्भवती महिलाओं की इच्छानुसार गर्भपातकी अनुमति प्रदान करते हैं ।
- भारत में वर्तमान में गर्भपात की महत्वपूर्ण विधि है - 1. MMA (गर्भपात की चिकित्सीय विधियाँ)। इस विधि में दो दवाइयों केसंयोजन का प्रयोग किया जाता है, जो मौखिक रूप से ली जा सकती है । इसके प्रयोग का प्रशिक्षण नर्स, सहायक नर्समिडवाइव्ज तथा आयुष चिकित्सकों को भी दिया जा सकता है । यह कार्य स्थानांतरण तथा अतिरिक्त प्रशिक्षण उन दुर्गम क्षेत्रों मेंअति लाभदायक होगा जहां कौशलयुक्त सर्जन तथा बेहोश करने वाली औषधियों का अभाव है । वर्ष 2014 में भी यह सुझावएक संशोधन के रूप में प्रस्तावित किया गया था किंतु इसे अभी तक अपनाया नहीं गया है |
No comments:
Post a Comment
We would be happy to hear you :)