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Tuesday, March 14, 2023

एक कंबल और आपके अधिकार

मैं बचपन से सुनता आया हूँ किरोटी, कपड़ा और मकानव्यक्ति की आधारभूत आवश्यकताएँ हैं। और, इन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए व्यक्ति अपनी पूरी ज़िंदगी मेहनत करता है। इसके साथ ही जैसे-जैसे मैंने उम्र के अलग-अलग पड़ाव पार किए, मुझे और भी बातें समझ में आने लगी। और, उनमें से एक बात यह है किरोटी, कपड़ा और मकानमें सिर्फ़ तीन चीजें ही नहीं है बल्कि इनके साथ कई दूसरी महत्वपूर्ण चीजें भी जुड़ी हुई है, जैसे - रोटी के साथ सब्ज़ी, पहनने वाले कपड़े के साथ ही ओढ़ने और बिछाने का कपड़ा और चार दीवारों वाले मकान के साथ सुरक्षित और बीमारियों से रहित वातावरण वाला मकान।

यदि किसी व्यक्ति पर आपकी आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने की ज़िम्मेदारी है तो वह सिर्फ़ रोटी देकर यह नहीं कह सकता कि वह आपको सब्ज़ी नहीं देगा क्योंकि उसने रोटी देकर उसकी ज़िम्मेदारी पूरी कर ली। इसी तरह यदि किसी के ऊपर यह ज़िम्मेदारी है कि वह आपको रहने के लिए मकान उपलब्ध कराएगा तो वह चार दीवारों के ऊपर एक छत देकर यह नहीं कह सकता कि उसकी मकान देने की सारी ज़िम्मेदारी पूरी हो गई है। उसको चार दीवारें और एक छत के साथ ही यह भी देखना पड़ेगा कि उस जगह पर रहना सुरक्षित है या नहीं। दिन में उस जगह का वातावरण कैसा रहेगा और रात में किस तरह के वातावरण का सामना करना पड़ेगा। क्या उस जगह पर रात में मच्छर ज़्यादा आते हैं? क्या किसी और जानवर के आने की आशंका है? यदि उस मकान में ऐसे सवाल पैदा होने की गुंजाइश है तो मेरे ख़्याल से वो 4 दीवारें और एक छत आपकी आधारभूत ज़रूरत पूरी करने वाला मकान नहीं है। यदि किसी रोटी को खाने से आपका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है तो वह रोटी आपकी आधारभूत ज़रूरत पूरी करने वाली रोटी नहीं है।


इन सब बातों से दो-चार होते हुए मेरे दिमाग़ में एक और प्रश्न आता है। जो कि इस धारा का एक महत्वपूर्ण प्रश्न है और वह है कि ऐसी आधी-अधूरी प्रदान की गई ज़रूरतों को पूर्ण आधारभूत आवश्यकता कैसे बनाया जाए? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए कोई रॉकेट साइंस लगाने की ज़रूरत नहीं है। बहुत आसान है कि रोटी के साथ सब्ज़ी दी जाये और ध्यान रखा जाये कि यह ख़ाना आपका पेट भरने के साथ ही आपके स्वास्थ्य को भी अच्छा रखे। आपको मकान दिया जाये तो उसमें ध्यान रखा जाये कि आपकी निजता का सम्मान हो, आपको नींद आए, रात्रिकाल में बल्ब से आने वाले छोटे-छोटे कीड़ों से आपका बचाव हो, मच्छरों से आपका बचाव हो, आपको बिछाने के साथ-साथ ओढ़ने के लिए कम्बल दिया जाये। तब जाकर आपका मकान आपकी आधारभूत ज़रूरतों वाला मकान होगा।


मैं जानता हूँ कि  कुछ लोगों को लगेगा कि ये बातें बहुत छोटी-छोटी है और मैं बहुत सामान्य बात कर रहा हूँ। यह सत्य भी है कि ये बातें इतनी छोटी हैं कि किसी को दिखायी भी नहीं देती। और, इसी बात का फ़ायदा उठाकर आधारभूत ज़रूरतें पूरी करने वाला व्यक्ति आपका शोषण करता है। मज़दूर वर्ग इस तरह के शोषण का सबसे ज्यादा शिकार होता है क्योंकि उसे लगता है कि उसके काम की क़ीमत तो उसका मालिक उसे दे ही रहा है तो फिर बाक़ी चीज़ों के बारे में क्या ही सोचना? और यहीं से शुरू होता है उसका शोषण। धूप में गड्डा खोदने वाले मज़दूर को छाया नहीं दी जाती, पीने का साफ़ पानी नहीं मिलता और खाने के लिए सिर्फ़ रोटी और नमक मिलने लगता है।


ख़ैर ये सब बातें तो आपको पहले से मालूम है तो मैं इसे ज़्यादा लंबा नहीं खींचूँगा। लेकिन एक और महत्वपूर्ण बात है जो मैं आपसे करना चाहता हूँ। यह आधारभूत ज़रूरतों को पाने का अधिकार किस-किसके पास है? लेकिन, इससे भी बड़ा प्रश्न यह है कि क्या कोई अपराधी जिसने किसी की हत्या की है, बलात्कार किया है या चोरी की है या किसी भी प्रकार का ऐसा कार्य किया है जो क़ानून अपराध है तो क्या उस व्यक्ति को भी इन आवश्यकताओं को पाने का हक़ है? इस प्रश्न से जूझने के लिए एक तर्क यह है चूँकि ये आधारभूत ज़रूरतें आपके प्राकृतिक अधिकार है अतः जब तक आप प्रकृति का हिस्सा है तब तक आपको इन ज़रूरतों की पूर्ति का अधिकार है। उदाहरण के लिए यदि कोई अपराधी जेल में बंद है तो जेल के अधिकारियों की यह ज़िम्मेदारी है कि जब तक जेल में वह व्यक्ति जीवित है अर्थात् प्रकृति का हिस्सा है, तब तक उस व्यक्ति को उसके प्राकृतिक अधिकार उपलब्ध करायें जायें। यदि आप किसी के निर्देशानुसार किसी यात्रा पर गये हैं और उसने आपकी सुरक्षा, आपके लिये रोटी, कपड़ा और मकान उपलब्ध करने का वायदा किया है तो उसकी यह ज़िम्मेदारी है कि रोटी के साथ सब्ज़ी उपलब्ध कराये। कपड़ा और मकान के साथ ज़रूरत के बिस्तर और कंबल भी उपलब्ध कराये। चाहे आप किसी भी परिस्थिति में हो, लेकिन आपकी आधारभूत ज़रूरतें आपसे नहीं छीनी जा सकती। एक कंबल सिर्फ़ कंबल नहीं है बल्कि अगर आप मच्छरों के बीच सो रहे हैं तो वह आपका प्राकृतिक अधिकार है चाहे आप किसी भी परिस्थिति में हो या आपने कोई भी नियम तोड़ा हो। एक मानव होने के नाते आपको मानवीय अधिकार मिलने ही चाहिए। यदि वह आपको नहीं मिल रहा है तो समझ लीजिये आपका शोषण हो रहा है और आपके साथ अमानवीय व्यवहार हो रहा है। इस शोषण से बचने के लिए आपके पास सिर्फ़ दो रास्ते हैं, या तो शोषण के ख़िलाफ़ खड़े हो जाओ या फिर वह जगह छोड़कर चले जाओ। मेरे ख़्याल से आपको जो रास्ता आपकी उम्र, समय और अनुभव के अनुसार आसान लगे आप बिना किसी देरी के उसे अपना लें। यही उस समय के लिहाज़ से आपके लिये सबसे बेहतर होगा।

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